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Showing posts from January, 2024

HOW DIVERSITY IN SPIRITUAL EXPLORATION CAN CONTRIBUTE TO PERSONAL GROWTH

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     HOW DIVERSITY IN SPIRITUAL EXPLORATION CAN CONTRIBUTE TO PERSONAL GROWTH ShivYog and Ishan Shivanand Ji's teachings shed light on the transformative impact of diverse spiritual practices. Embracing this diversity is key to personal growth, as it enriches the spiritual journey and leads to a more fulfilling life. Let's delve into the insightful understanding they offer on the power of varied spiritual exploration. 1. Unity in Diversity: The core teaching is that diverse spiritual practices are like different rivers merging into the same vast ocean of universal consciousness. By recognizing the unity in diversity, individuals can grow beyond religious or cultural boundaries, fostering a sense of global spiritual kinship. 2. Holistic Approach to Personal Growth: The teachings encourage a holistic approach to personal growth, incorporating various spiritual practices from different traditions like meditation, yoga, chanting, and rituals. This well-rounded method ensures ...

अपनी सोच सकारात्मक कैसे रखें?

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  अपनी सोच सकारात्मक कैसे रखें? जब व्यक्ति को जीवन में असफलता का सामना करना पड़ता है तो उसके मन में यही ख्याल आता है कि मैं यह नहीं कर सकता क्योंकि मेरे भाग्य में यह नहीं है। यही उसकी असफलता का मुख्य कारण है। यह सोच ही व्यक्ति को नकारात्मकता का शिकार बनाती है और वह अपनी असफलता का दोष दूसरे पर डालकर अपने आपको सही बताने का प्रयास करता है। ऐसा करके व्यक्ति अन्य लोगों से संबंध बिगाड़ लेता है और खुद के दुर्भाग्य को अंजाने में न्यौता दे बैठता है। असफलता को अनुभव के रूप में लेने के बजाय व्यक्ति उदास हो जाता है और सफलता की स्थिति में व्यक्ति उतना ही उत्साहित और स्वयं पर गौरवांवित महसूस करता है। दोनों ही स्तिथियों में वह ईश्वर के प्रति समर्पण नहीं करता और उनका धन्यवाद करना भी भूल जाता है। जीवन में जो भी सफलता और असफलता हमें प्राप्त होती है उसके पीछे हमारी क्षमता और आत्मविश्वास के साथ हमारे संचित कर्म भी होते हैं। हमारे संचित पुण्य कर्मों के कारण हमारे थोड़े से प्रयास ही सफलता में परिवर्तित होते हैं पर वहीं जो हमारे बुरे कर्म होते हैं वह असफलता को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। हम भूल जाते हैं कि सफ...

क्या रोगमुक्त जीवन स्वयं के हाथ में है?

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  क्या रोगमुक्त जीवन स्वयं के हाथ में है? आज के दौर में व्यक्ति बीमारियों से परेशान है। आखिरकार यह बीमारियां हमारे जीवन में आती क्यों हैं या यूं कहें कि इन बीमारियों का जन्म हमारे शरीर में कैसे होता है? क्या आप जानते हैं, यदि नहीं, तो जान लीजिए क्योंकि यह जानकारी आपके जीवन में बहुत लाभकारी साबित हो सकती है। दरअसल, हमारे जीवन में बीमारी के पीछे हमारे भाव छिपे होते हैं। यदि हमारे मन में कोई विकार अर्थात बुरे विचार, गलत धारणाएं, दुःख और शोक मौजूद रहते हैं तो यह विकार हमारे शरीर में स्थान बना लेते हैं और इन विकारों का प्रभाव हमारे भावनात्मक स्तर पर पड़ता है! इसके बाद जब हमारी भावनात्मक स्थिति और शारीरिक स्थिति के बीच सामंजस्य उत्पन्न होता है तो यही सामंजस्य बीमारी का मूल कारण बन जाता है। इस स्थिति से बचने के लिए एक मात्र रास्ता होता है, जब मनुष्य देव भाव की स्थिति में होता है और नियमित रूप से अपने दैनिक जीवन में साधना को स्वीकार कर लेता है, तब उसके अंदर धीरे-धीरे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ने लगता है। यह वह ऊर्जा है जिससे मनुष्य में हर रोग को ठीक करने की क्षमता भी जागृत होती जाती है। ...